राणा कुम्भा की जीवनी ( Rana Kumbha Biography Hindi )
राणा कुम्भा की जीवनी ( Rana Kumbha Biography Hindi )
विजय स्तंभ |
संपूर्ण राजपूताना और अखंड भारत में वीरो की ललकार और उनके परकर्मी इतिहास से हमने बहुत कुछ सीखने को मिलता है और उनके इसी गौरवशाली इतिहास से हमारा सिन्हा गर्व से चोड़ा हो जाता है आज हम उन्हीं महान वीरों में से राणा कुम्भा के बारे में बात करने करने जा रहे है राणा कुम्भा का इतिहास गर्व से भरा है मेवाड़ के इतिहास में राणा कुम्भा का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है, राणा कुम्भा को इतिहास में महाराणा कुम्भकर्ण या कुम्भकर्ण सिंह के नाम से भी जाना है। आज हम इन्ही महान शासक राणा कुम्भा के बारे में बात करेंगे
राणा कुम्भा की जीवनी ( Rana Kumbha Biography Hindi )
राणा कुम्भा भारतीय इतिहास में सुप्रसिद्ध नाम है, मेवाड़ रियासत की गद्दी पर राणा मोकल जी की मृत्यु के बाद वि.सं. 1490 में राणा कुम्भा का राजतिलक हुवा था। कुम्भा भारतीय स्थापत्य कला को बढ़ावा देने वाले शासक थे, राणा कुम्भा को ही चितौड़गढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता कहाँ जाता है, क्योकि इनके काल में भी वर्तमान किले का स्वरुप निखारा गया था।
हम इसी बात से अंदाजा लगा सकते है की वह कितने बड़े निर्माता थे। की मेवाड़ में निर्मित 84 किलों में से 32 किलों का निर्माण स्वयं राणा कुम्भा के शासन में हुवा था। तथा सबसे महत्वपूर्ण यह की कुंभलगढ़ किले में ही करीब 300 मंदिरो का निर्माण भी महाराणा कुम्भा ने करवाया था
राणा कुम्भा का प्रारंभिक जीवन
राणा कुम्भा के पिता का नाम महाराणा मोकल था एवं माता का नाम सौभाग्य देवी था। परमप्रतापी शासक राणा कुम्भा ( rana kumbha ) का जन्म मेवाड़ के सिसोदिया राजपूत वंश में हुआ था। बचपन से ही बालक कुम्भकर्ण बलशाली और निडर थे और कलाप्रेम तो विरासत में पिता राणा मोकल से मिली थी। जब पिता की हत्या के बाद राणा कुम्भा Rana Kumbha मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे थे, तब सबसे पहले पिता के हत्यारों से चुन-चुनकर बदला लिया और सभी को मौत के घाट उतार अपना प्रण पूरा किया था।
अपने पिता के हत्यारों को शरण देने वाले मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को भी राणा कुम्भा ने सारंगपुर के निकट बुरी तरह हराया और इसी विजय की याद में और अपने सैनिको के शौर्य को अंकित करने हेतु चितौड़गढ़ दुर्ग में प्रसिद्ध विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया था। अपने प्रारंभिक शासनकाल में ही राणा कुम्भा Rana Kumbha ने नागौर, सारंगपुर, अजमेर, मण्डौर, खाटू और बूंदी जैसे सुदृढ़ मजबूत रियासतों पर अपनी विजय पताका लहरा दी थी।
साम्राज्य विस्तार की महत्वकांशा के कारण ही उन्होंने दिल्ली के बादशाह सैयद मुहम्मद शाह और एक मजबूत राज्य गुजरात के सुल्तान अहमदशाह को भी परास्त कर अपना लोहा सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनवा दिया था। एक समय में महाराणा कुम्भा की ख्याति इतनी हो गई थी की कोई भी सुल्तान और राजा उनसे टकराने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। राणा कुम्भा Rana Kumbha के सैकड़ो दुश्मन बन चुके थे, और मालवा और गुजरात के सुल्तान ने मिलकर मेवाड़ पर कई बार आक्रमण किया किन्तु हर बार उनको मेवाड़ से पराजय का सामना करना पड़ा।
राणा कुम्भा एक महान शासक थे
अपने पिता की हत्या के बाद मेवाड़ की राजगद्दी पर जब बैठे थे तो सबसे पहले गद्दारो को सजा दी थी, और मेवाड़ के कट्टर शत्रु मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को परास्त कर उनके क्षेत्र को अपने कब्जे में करके चितौड़गढ़ में विजयस्तम्भ का निर्माण करवाया था। इससे भारत और राजपूतो के इतिहास में वह एक महान शासक के रूप में विख्यात हुवे। राणा कुम्भा को भारतीय स्थापत्य कला से बहुत अधिक प्रेम था, मेवाड़ में उन्होंने करीब 32 किलो का निर्माण करवाया था। जिसमे कुम्भलगढ़ किला विश्व में सबसे मजबूत किलो में से एक है।
अपनी वीरता और शौर्य के बल पर ही Rana Kumbha ने मध्यकालीन इतिहास के राजाओं में अपना नाम श्रेष्ठ शासको में दर्ज करवाया था। राणा कुम्भकर्ण ने मेवाड़ में अनेकों किले, महल, मंदिर और तालाबों का निर्माण करवाया था जो उन्हें एक कला और संस्कृति को पसंद करने वाले शासक के रूप में भी दर्शाता है।
राणा कुम्भा का इतिहास
महाराणा मोकल की मृत्यु के बाद सं 1433 को महाराणा कुम्भा का राज्याभिषेक हुवा था। मेवाड़ के शत्रुओं ने कई बार मेवाड़ हासिल करने हेतु राणा कुम्भा के साम्राज्य पर आक्रमण किया था किन्तु उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा था। राणा कुम्भा का अपने निकटतम राज्य आबू से जब खतरा महसूस हुवा तब उन्होंने आबू के देवड़ा राजा को परास्त करके आबू को भी अपने अधीन कर लिया था।
राणा ने अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की याद में एक मजबूत कुम्भलगढ़ किले का निर्माण करवाया था, इस किले की दिवार की लम्बाई 36km है, जो की चीन दी दिवार के बाद दूसरे नंबर पर आती हे। महाराणा प्रताप का जन्म भी इसी किले में हुवा था
राणा कुम्भा से जुड़े रोचक तथ्य
राणा कुम्भा को इतिहास में कई उपाधिया प्राप्त है जैसे अभिनवभृताचार्य, राणेराय, रावराय, हालगुरू, शैलगुरू, दानगुरू, छापगुरू, नरपति, परपति, गजपति, अश्वपति, हिन्दू सुलतान, नांदीकेशवर आदि।
Rana Kumbha को इतिहास में केवल एक कुशल शासक ही नहीं अपितु कला प्रेमी और एक साहित्यकार के रूप में भी जाना जाता है , उनकी प्रसिद्ध रचना संगीत राज को भारतीय संगीत साहित्य का एक मजबूत आधार स्तम्भ कहाँ जाता है।
महाराणा कुम्भा ने कुल 32 दुर्गो का निर्माण करवाया था जिनमे कुभलगढ़, अलचगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग, बसन्तगढ़ को प्रमुख माना जाता है।
कुम्भलगढ़ किले में राणा ने 300 से अधिक मंदिरो का निर्माण करवाया था, सास बहू का मन्दिर तथा सूर्य मन्दिर जिनमे विशेष स्थान रखते हे।
राणा ने हिंदुत्व की पताखा को सम्पूर्ण भारतवर्ष में लहराने का कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने मालवा के सुल्तान, गुजरात, नागौर और दिल्ही जैसी शक्तिशाली मुस्लिम रियासतों को धूल चटाई थी और अपना कब्ज़ा कर लिया था।
राणा कुम्भा की मृत्यु और मेवाड़
सं 1473 ई. में राणा कुम्भा की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद उनका बेटा उदयसिंह प्रथम मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे थे। किन्तु वह एक कमजोर शासक थे इस कारण परिवार और राज दरबार के विरोध से उसको राजगद्दी त्याग नी पड़ी। उसके बाद उदयसिंह के छोटे भाई राजमल मेवाड़ के शासक बने, जिन्होंने मेवाड़ पर 36 वर्षो तक शासन किया। राणा राजमल की मृत्यु के बाद उनका बेटा संग्रामसिंह राणा सांगा मेवाड़ के प्रतापी शासक हुवे थे।
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