Jamwai Mata Jamwa Ramgarh History in Hindi

 जयपुर / बहुत रोचक है जमवाय माता मंदिर का इतिहास, राजा समेत पूरी सेना को देवी से मिला था जीवनदान

jamway mata photo
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जयपुर जयपुर के नज़दीक और रामगढ झील से एक किलोमीटर आगे पहाड़ी की तलहटी में बना जमवाय माता का मंदिर आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में बसे कछवाह वंश के लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। जमवाय माता कुलदेवी होने से नवरात्र एवं अन्य अवसरों पर देशभर में बसे कछवाह वंश के लोग यहां आते हैं और मां को प्रसाद, पोशाक एवं 16 शृंगार का सामान भेंट करते हैं।

कछवाहों के अलावा यहां अन्य समाजों के लोग भी मन्नत मांगने आते हैं। यहां पास ही में रामगढ़ झील एवं वन्य अभयारण्य होने से पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं।

ये है मान्यता

जमुवाय माता का इतिहास

जय जमुवाय सदा सहाय

कछवाहा री कीर्ति सारी सदा सहाय

जसधारी बणीयां जगत, जय माता जमुवाय

 

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                                                            Jamway  mata temple

श्री जमुवाय माता का मन्दिर जयपुर से 32 कि. मी. हें श्री जमुवाय माता शेखावतो व कच्छवाओ कि कुल देवी है

Jamwai Mata Jamwa Ramgarh History in Hindi :- आम्बेर-जयपुर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी जमवाय माता का प्रसिद्ध मंदिर जयपुर से लगभग 32 कि.मी. पूर्व में जमवा रामगढ़ की पर्वतमाला के बीच एक पहाड़ी नाके पर रायसर आंधी जाने वाले मार्ग पर स्थित है। जमवायमाता के नाम पर ही यह कस्बा जमवा रामगढ़ कहलाता है।

वर्तमान में जमवा रामगढ़ को जयपुर की जल आपूर्ति के लिए बने विशाल बाँध के कारण जाना जाता है। यहाँ पर पर्यटकों का तांता लगा रहता है। जमवाय माता का यह मंदिर रामगढ़ बांध से लगभग 2 कि.मी. दूर है। सुरम्य हरियाली से आच्छादित मनोहर प्रकृति की गोद में स्थित जमवायमाता का मन्दिर बहुत ही आकर्षक दिखाई देता है।

Jamway  mata temple
Jamway  mata temple


जमवायमाता का पौराणिक नाम जामवंती है। इस मन्दिर की स्थापना कछवाहा दूलहराय ने की थी। ढ़ूंढ़ाड़ में कछवाहा वंश के आने से पूर्व यह स्थान मांचकहलाता था। यहाँ मीणों का लुटपाट था। दूलहराय ने मीणों पर आक्रमण किया लेकिन उन्हे पराजय का सामना करना पड़ा। जब वह घायल अवस्था में थे तब उन्हे उनकी कुलदेवी जमवा माता ने दर्शन दिए जिनकी प्रेरणा से दूलहराय ने पुनः मीणों से युद्ध किया और विजयी हुए । तब उन्होने इस क्षेत्र का नाम अपनी कुलदेवी के नाम पर जमवा रामगढ़ रखा। जिस स्थान पर उन्हे देवी ने दर्शन दिए उस स्थान पर उन्होने जमवा माता के इस मन्दिर का निर्माण करवाया। आम्बेर को राजधानी बनाने से पूर्व जमवा रामगढ़ कछवाहों का केंद्र रहा। आम्बेर में इस वंश को स्थापित करने में जमवा रामगढ़ ने मुख्य भूमिका निभाई है।

रामगढ़ में स्थित भग्न किला, प्राचीन शिव मन्दिर, दांत माता का मंदिर, जमवाय माता मन्दिर आदि आज भी कछवाह राजपुतोa की भूली-बिसरी यादों को अपने में सँजो रखे हैं। मध्ययुग तक जमवा रामगढ़ का ही जमवाय माता का पहला एवं प्राचीन मन्दिर था। इसके बाद आधुनिक युग में श्रद्धाभाव के कारण कई जगह ऐसे मन्दिर बने। शेखावाटी क्षेत्र में भोड़की (गुढा गौड़जी, झुंझुनू) के पास जमवाय माता का प्राचीन मन्दिर है। भोड़की की जमवाय माता मन्दिर में दर्शनार्थ दूर-दूर से प्रवासी आते हैं।जमवायमाता को कुलदेवी के रूप में पूजने वाले समाज और गोत्र

सं.

समाज गोत्र

1.

खण्डेलवाल श्रावक

गंगवाल, जांझरिया, कटारिया, भुंवाल्या, जलवाण्या

2.

गुर्जर गौड़

झूंझडोद्या, जूसडोद्या।

3.

राजवंश

कछवाहा, शेखावत

4.

विजयवर्गीय

अमरियो,आमटा, आसोज्या, कटरिया, खुंवाल, दुग्गा, गढ़वाल, चीटीजवाल, जलधरिया, डांस, तहतूण्या, दुग्गा, दुसाज, नाराणीवाल, बंथलीवाल, बंदीवाल, बहेतरा, बोहरा, ग्वालेरा भियाण्या, पूरभियाण्या, मेड़त्या, राजोरिया, लाटणीवाल, वैंकटा, सुजाण्यां, सुरसरीवाल, लहटाणी।

5.

मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार

कछवाहा, कठातला, खंडारा, पाडीवाल,बीजवा, सहीवाल, आमोरा, गधरावा, धूपा, रावठडिय़ा।

6.

खण्डेलवाल (वैश्य)

बढेरा।

7.

ओसवाल

गांगोलिया, जाभरी।

 

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